औरत की कहानी औरत की जुबानी.......!
हम परिवार में छः बहिने है,भाई नहीं है पापा काफी भाग दौड करते है,लेकिन इतने बडे परिवार को चलाना आज संभव नहीं है। मै उच्च शिक्षा पाना चाहती थी लेकिन हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नही थी की मुझे लेपटाप खरीदकर दे सके । मैने सम्बल से लेपटाप के लिये निवेदन किया जिससे मैं अपनी पढाई भी पूरी कर सकू और साथ मे मेरे पापा की मदद भी कर सकू । अब मै लेपटाप पर काम करके प्रति माह 3000/- रू कमा लेती हॅू जिससे मै अपने पापा की मदद करती हॅू । मुझे बहुत अच्छा लगा मै सम्बल की सदैव आधारी रहूॅगी । मै स्वयं अपनी कमाई से अपने शिक्षण का खर्चा भी निकाल लेती हॅू तथा परिवार के लिए भी कुछ करने को सक्षम हो गई हॅू ।
मै नागौरिया बास आशापुरी माता के मन्दिर के सामने जोधपुर की रहने वाली हॅू मैने भगवान महावीर विकलंाग सहायता समिति महिला प्रकोष्ठ सम्बल के बारे में सुना । संस्थान में ब्यूटी पार्लर का कोर्स करने आने लगी । संस्थान में आकर बहुत अच्छा लगा। ब्यूटी पार्लर का पूरा प्रशिक्षण करने के बाद मे घर पर पार्लर का काम करने लगी मुझे संस्थान से भी मदद मिली और आज मै ब्यूटी पार्लर का कार्य करके मै अपने परिवार को चलाने में सहयोग कर रही हॅू जो आज मंहगाई की मार से त्रस्त है,परिवार मेरे इस प्रयास से बहुत अभिभूत है ।
अफसाना की पाच बहने है। परिवार की स्थिति बहुत दयनीय है । अफसाना की माता झाडू-पोछे आदि का कार्य करके अपने परिवार का खर्चा उठा रही है ।
अतएव अफसाना अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी । उसने सम्बल कार्यक्रम मे चल रहे सिलाई प्रशिक्षण से सिलाई का प्रशिक्षण लिया। उसके सिलाई सिखने के बाद उसके पास मशीन खरीदने के पैसे नहीं थे तब उसे संस्थान के माध्यम से सिलाई की मशीन दी गई । उस मशीन की सहायता से उसने सिलाई का कार्य प्रारम्भ किया । वह अब सिलाई करके हर महिने अपने परिवार को 3000 से 4000 रू की मदद करती हेै। इस प्रकार वह अपने परिवार का सहारा बनी ।
मेरे परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी । मेरे एक लडका एवं 1 लडकी थी,पति के पास कोई कामकाज नहीं था,कभी काम पर जाते और कभी नहीं ।
एक दिन पुष्पा भूतडा से मै मिली तो उन्होने सम्बल संस्था के माध्यम से किराणा के व्यवसाय को खोलने में सहायता की एवं 5000 रू की राशि से किराणे की छोटी दुकान आरम्भ की । मैने कडी मेहनत करके मासिक आय को बढाया एवं पैसे बचाकर बच्चों की पढाई एवं पालन पोषण अच्छी तरह करने लगी । इसका सारा श्रेय सम्बल संस्था को है,जिन्होने आर्थिक सहायता देकर हमें जीवन में खुशहाली दी ।
1 प्रतिमाह 6000 से 7000 मासिक आय हो गई । 2 अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रही हॅू । 3 परिवार को रोजगार से जोड दिया है । ठस संस्था के प्रति मैं बहुत आभारी हॅू । इस संस्था ने मेरा जीवन खुशियों से भर दिया ।
शादी होने के बाद हर महिला स्वप्न देखती है कि मैं घर एवं बच्चों की देखभाल करूगी और मेरे पति मेरी आर्थिक सहायता करेगे। अच्छा धन्धा करके परिवार का पालन पोषण करेगी लेकिन मेरे जीवन में ऐसा नहीं हुआ । पति कुछ भी नहीं कमाता था और मै इसी कारण बहुत परेशान रहती थी । तभी एक दिन संस्था की कर्मचारी से मिली । उन्होने संस्था के माध्यम से आटे की चक्की दिलवाई । मै उस चक्की से अनाज पीस कर अपना गुजारा करने लगी और बच्चों को पढाई भी करवाने लगी और हर माह 3000 से 4000 रू कमाने लगी । अपने रहने के लिये पक्का मकान भी बनवा लिया । जीवन मे अच्छे लोगों के सम्पर्क में आना भी सौभाग्य की बात है । आज मै गरिमामय पारिवारिक जीवन जी रही हॅू ं इसका श्रेय इस संस्था का है जिसने मेरे जीवन में आशा की लहर ला दी ।
मेरा इस संस्था से सम्पर्क दो वर्ष पूर्व हुआ था मेरे परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी । मेैं कुछ काम करके परिवार की मदद करना चाहती थी । अपने भाईयों को भी अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती थी । इस सोच में रहती थी कि कैसे ये सब सम्भव हागा । एक दिन मेरी पी.एच.ई.डी के मार्गदर्शक श्री विकाश जी ने संस्था अधिकारी के बारे में बताया और मैं वहा पर ब्यूट पार्लर सीखने जाने लगी और 6 महीने का कोर्स किया। तत्पश्चात अपना ही काम शुरू करने क मन बनाया । इसी सोच को क्रियान्वित किया परियोजना अधिकारी ने और ब्यूटी पार्लर का व्यवसाय खोलने हेतु संस्था से ऋण दिलवाया । मैने यह काम शुरू कर मैने अपने परिवार एवं भाइयों को शिक्षा के खर्च को वहन किया । लगभग 6000 से 7000 की मासिक आय होने लगी और मेरे सपने पूरे होने लगे,ये सब संस्था के द्वारा ही सम्भव हुआ । मै इस संस्था की बहुत ऋणी हॅू ।
मेरा इस संस्था से 5 वर्ष पूर्व सम्पर्क हुआ । मेरे पति को टी.बी की बीमारी थी उनके इलाज के लिए उनको अहमदाबाद ले गई । जिसमें काफी खर्चा हो गया । अब तो परिवार को पालना एवं बच्चों की खाने-पीने की व्यवस्था करना बहुत मुश्किल हो रहा था। उस समय मेडम शमा परवीन के द्वारा संस्था की जानकारी मिली और मैने अपने निराश जीवन के बारे मेे बताया तो उन्होने परियोजना अधिकारी से बातकर संस्था से जूतो के कार्य के लिए ऋण दिलवाया । ऋण लेकर मैने जूते बनाना आरम्भ किया और बाजार में बेचने लगी। मेरा व्यापार ईश्वर की कृपा से बहुत अच्छा चलने लगा और हर महीने 3000 से 5000 रू कमाने लगी । संस्था द्वारा एक और सहायता मिली जिला उघोग केन्द्र की सहायता से हस्तशिल्प मेले में स्टाल भी उपलब्ध करवाया जिससे मेरे रोजगार में चार चॉद लग गये और अब प्रत्येक वर्ष स्टाल की सहायता से 10000 से 12000 रू कमाकर अपने परिवार की अच्छी देख-रेख कर रही हॅू । सच पूछों तो संस्था ने मेरा एवं मेंरे परिवार का जीवन ऋण देकर सुधार दिया । मै बहुत बहुत आभारी हॅू ।
यह गांव जोधपुर से लगभग 70 किमी दूर है। मेरी जिन्दगी की कहानी बहुत ही अनोखी है । मेरा पीहर पक्ष गरीबी की हालत में था। ससुराल वालो ने गरीबी का फायदा उठाते हुए अपने बीमार बेटे की शादी मुझसे करा दी ।
मेरे जीवन पर पहाड टूटा जब मेरा बेटा 6 माह का था और मेरे पति की मृत्यु हो गई। मेरी उम्र 22 वर्ष की थी । पति की मृत्यु के बाद ससुराल वालो ने भी सहारा नहीं दिया और मुझे परेशान करने लगे और घर से निकाल दिया । तभी मैने सम्बल संस्था से सम्पर्क किया और संस्था सचिव ने मेरे ससुर से बात कर कानूनी जानकारी देकर वापस घर में रहने की जगह दिलवाई और अपने रोजगार हेतु सिलाई मशीन भी दिलवा दी । उसी से आज मै मासिक 4000 से 5000 रू कमा रही हॅू। समय-समय पर संस्था मुझे सहायता व सहयोग कर रही है। जो अनुकरणीय है। इसके लिये सम्बल संस्था बधाई की पात्र है। इसी सम्बल संस्था के सहारे मेरे जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन आया।
1 अपने मकान मे अच्छा जीवन जी रही हॅू। 2 बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवाकर शिक्षित कर रही हॅू । 3 वर्तमान में बच्चे एक सातवी और एक चौथी कक्षा में पढ रहे है। मै सम्बल संस्था के कारण ही बहुत खुशहाली का जीवन जी रही हॅू ।
मेरा परिवार बडा था,चार बच्चे थे,पति की मजदूरी से परिवार का पालन पोषण नहींे हो पा रहा था,उनको मजदूरी में बहुत कम पैसे मिलते थे ।
मैने सोचा मुझे भी कुछ करना चाहिए । लेकिन मै अनपढ थी नौकरी मिलना सम्भव न था,लेकिन मुझे पूरी मन में आस थी की मै कुछ कर सकती हॅू । मैने सुशीलाजी मैडम का नाम बहुत सुन रखा था और एक दिन मै उनसे मिली और अपने मन की व्यथा बताई । मै सब्जी की दुकान खोलना चाहती हॅू मेरी मदद करो ।
संस्था के माध्यम से 2009 में सब्जी की दुकान हेतु 3000/- की राशि मिली और मैने सब्जी की दुकान खोलकर परिश्रम करके 2000 से 3000 रू मासिक कमाने लगी । बच्चो का अच्छी तरह पालन पोषण करने लगी । आत्मनिर्भर बनने पर बहुत खुशी मिल रही थी। मै सम्बल संस्थान की बहुत आभारी हॅू जिन्होने हमारी मदद कर जीवन में खुशिया भर दी ।
मेरे शादी के 18 वर्ष ही हुए थे कि मरे पति का साथ छूट गया। छोटी उम्र ससुराल का कोई सहारा नहीं। मेरे दो लडके एवं दो लडकिया थी । जीवनयापन बहुत कठिन हो रहा था।
बस एक दिन जीवन के मोड पर संस्था की लालादेवी ने मेरी आप-बीती सुनी और संस्था के माध्यम से कपडे की दुकान खुलवा दी और मैं कपडे गांवों में जाकर बेचने लगी । प्रारम्भ में 2000,3000 महीने की आय हो रही थी । लेकिन आज मेैने इस व्यवसाय में अपने बच्चों को भी लगा दिया है। अब मुझे 7000 से 10000 तक मासिक आय होने लगी है। ये देन सम्बल संस्था की है,अगर आज इस संस्था की सहायता मुझे नहीं मिली होती तो मेरा जीवन कभी का समाप्त हो जाता।
आज मुझे भगवान से भी ज्यादा इस संस्था ने जीवन में सहारा दिया है । इस संस्था के प्रति नतमस्तक हॅू । मेरा परिवार खुशहाली से भरा जीवन जी रहा है। सम्बल संस्थान को कोटि-कोटि धन्यवाद ।
मैं गावं भीमकौर मे रहती थी । लेकिन गावं में पूरी तरह कमाई न होने के कारण जोधपुर में आ गई । मेरा बेटा बहुत बिमार रहता था,पति कभी कमाते थे और कभी नहीं,बेटे के इलाज एवं दवाअयों में बहुत पैसे की आवश्यकता थी,बिना पैसे के कुछ भी नहीं हो सकता था । एक दिन लीला जी ने सम्बल संस्था की सचिव सुशीला जी के बारे में बताया और उनको मैने अपनी आप बीती सुनाई ।
किराणे की दुकान हेतु सन् 2002 में 4000 रू की सहायता दिलावाइ। मैने किराणे की दुकान खोली । मैं महीने में 3000 से 4000 तक कमाने लगी । उसी कमाई से दुकान में सामान भी बढाने लगी,मेरी कमाई 5000 से 6000 तक होने लगी । बच्चे का इलाज भी अच्छा हो गया और परिवार भी अच्छी तरह चलने लगा। निराशा जीवन में आशा की लहर आई। सम्बल संस्था की सहायता से यह सब सम्भव हुआ । मै संस्था की अत्यंत आभारी हॅू ।
मेरा जीवन दुख से सराबोर था,पति कमाता नही था तथा अफीम का नशा भी करता था । इसके लिए प्रति दिन उसको पैसे चाहिए थे । परिवार में किसी प्रकार की सहायता नहीं करता था । बच्चों का भी ख्याल नहीं रखता । परेशानियों भरा जीवन जी रही थी।
ऐसे जीवन से परेशान होकर अपने पिताजी के पास आकर रहने लगी लेकिन पिता की मृत्यु हो गई तो मेरा जीवन और दुखी हो गया । निराश जीवन में एक दिन खुशी की लहर आई जब मै सम्बल संस्था की भवंर कंवर से मिली और अपनी परेशानियों के बारे में बताया और भंवर कंवर ने संस्था की सचिव सुशीला जी बोहरा से मिलिवया । वो मेरे जीवन का भाग्यशाली दिन था। सम्बल संस्था की सहायता से मुझे फेैन्सी सामान की दुकान खुलवाकर दी गई । उसी दिन से जीवन जीने की चाह हुई। बेटे को स्कूल भेजने लगी और मासिक 4000 रू कमाने लगी और आत्मनिर्भर बनी । इस संस्था ने मेरा जीवन ही बदल दिया और निराश जीवन में आशा की किरण से उजाला हो गया है ।
मेरे पति बहुत बीमर रहते थे । एक्सीडेन्ट में उनके शरीर की हालत बहुत खराब हो गई । उनके इलाज एवं दवाइयों में बहुत पैसे की आवश्यकता प्रतिदिन होती थी और इसी कारण परिवार को चलाना बहुत मुश्किल हो रहा था ।
बहुत परेशान रहने लगी,तभी मुझे किसी ने सम्बल संस्था के बारे में बताया और मैं महिल कर्मचारी से मिली और अपनी परेशानियां बताई ।
संस्था द्वारा 2009 में खाीचियां,पापड,बडिया के रोजगार हेतु 4000 रू दिलवाये । धीरे-धीरे 2500 से 3000 रू कमाने लगी । उस समय मेरी उम्र 52 वर्ष की थी फिर भी हिम्मत कर के मेहनत की जिससे कमाई 5000 तक हो गई । धीरे-धीरे श्री गणेश स्वयं सहायता समूह का गठन किया और 11 महिलाओं को जोडा । 25 लाख का ऋण लिया और मशीनों द्वारा रोजगार बढाया । इस रोजगार से प्रत्येक महिला 5000 से 6000 रू तक की आय बढी । मेरे बेटे बहू इसी रोजगार में जुड गए और आज रोजगार बहुत अच्छा चलने लगा। कौन कहता है महिलाओं में प्रबन्ध और संगठन की शक्ति नहीं होती । मै,मेरा उदाहरण देती हॅू । आर्थिक मुक्ति महिला सशक्तिकरण का पहला चरण है। मैं संस्था को बहुत बहुत धन्यवाद देती हॅू ।
मै उत्तर प्रदेश में रहती थी । शादी के बाद पति जोधपुर ले आये । मेरी छोटी उम्र में शादी हो गई । यहां आकर पति को शराब पने की बुरी आदत पड गई जिससे परिवार की आर्थिक दशा बहुत खराब हो गई । कुछ करना चाहती थी लेकिन बिना पैसे कुछ कार्य भी नहीं कर सकती थी। इधर-उधर भटकती रही । एक दिन मुझे सम्बल संस्था के बारे में बताया तो मेरे मन में कुछ आस जगी और मैं वहां जाकर संस्था की सचिव सुशीला जी से मिली और उन्हें अपनी आप-बीती सुनाई ।
संस्था के माध्यम से खीचिया पापड के कार्य हेतु मुझे कुछ राशि दी गई । कडी मेहनत कर मैने इस व्यवसाय से अपने जीवन में खूब कार्य किया और मासिक 3000 से 5000 रू कमाने लगी तथा अपने परिवार का पालन-पोषण करने लगी । आज मेरा व्यवसाय अच्छा चल रहा है। जीवन में खुशहाली आई है। इस संस्था की आभारी हूॅ जिन्होने मुझे जीवन में आर्थिक सहायता देकर व्यवसाय खुलवाया । सम्बल संस्था को बहुत बहुत धन्यवाद ।
मेरे परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी। कारण था कि मेरे पास कोई रोजगार नहीं था। पति का सहयोग नहीं था । नशे की आदत के कारण पैसे भी घर को चलाने के लिए नहीं होते थे । ऐसा निराशामय जीवन से बहुत परेशान थी तथा जोधपुर आकर रहें सूरसागार रहने लगी । इसी आशा के साथ कि कोई भी काम करके बच्चों का पालन-पोषण कर पाउगी। मन में कुछ सोचो तो ईश्वर भी सहायता करता है। मुझे ज्योति सोलंकी मिली और उनके पास बन्धेज का कार्य सिखने लगी । जब काम सिख लिया तो उन्होने मुझे संस्था के माध्यम से 5000 रू दिलवाये और मैने अपना कार्य शुरू किया । दिन रात कडी मेहनत के साथ कार्य करने लगी और अपने 3 बेटिया और एक बेटे को इसी धन्धे से जोड लिया । बन्धेज का कार्य अच्छा चलने लगा और मासिक आय 10000 से 12000 रू तक होने लगी । मेरी जिन्दगी इस संस्था के सहयोग से जन्नत हो गई । मैं एवं मेरा परिवार इस संस्था के सहयोग से सशक्त हुआ। इस संस्था का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हॅू।
मेरी कम उम्र मेें शादी हो गई थी,परिवार अच्छे से चल रहा था,पति मजदूरी पर जाते थे,लेकिन उनकी एक्सीडेन्ट में मौत हो गई । उस समय मेरी उम्र 22 वर्ष थी,मेरे जीवन में दुखी का पहाड जैसे गिर गया हो,मेरे दो बच्चे थे,जिनका पालन पोषण करना कठिन होने लगा । समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करू और और बहुत परेशान रहने लगी । एक दिन में ज्योति सोलंकी से मिली । उन्होने मुझे सम्बल संस्था के बारे में बताया तथा मुझे सुशीला मैडम से मिलवाया,जीवन की परेशानिया उन्हे बताई ।
मेरे लिए वह जीवन का सुनहरा दिन था जब सम्बल संस्था द्वारा मुझे 2006 में रोजगार हेतु 4000 रू दिलवाये गये । मैने उन पैसो से बैग बनाने का रोजगार शुरू किया । बैग बनाकर बेचने लगी और महने के 3000 से 4000 रू कमाने लगी और परिवार का पालन पोषण अच्छी तरह से करने लगी,बच्चे स्कूल भी जाने लगे । निराश जीवन मेै अब खुशहाली आई तथा सम्बल संस्था की सहायता से हमारे परिवार को नया जन्म मिला। मै अत्यंत इस संस्था की आभारी रहूॅगी ।
मै अपने पति के साथ गावं में रहती थी और पति गांव में ही मजदूरी करते । लेकिन गावं में रोज मजदूरी नहीं मिलती तो रोज घर में पैसा भी नहीं आता । तो सोचा शहर जाकर मजदूरी करे । किराए का मकान लेकर शहर में रहने लगी दुर्भाग्यवश शहर में भी आय का कोई साधन नहीं बन पा रहा था । किराया भी नहीं दे पा रही थी ।
एक दिन ज्योति सोलंकी की मदद से संस्था से मणिहारी कार्य करने के लिए 4000 रू लिए । मैने मणिहारी का कार्य करना शुरू किया और हर महिने 4000 से 6000 रू कमाने लगी । इस बात को 6 वर्ष हो गये है और इसी कमाई से पुत्र को नर्सिग की ट्रेनिंग दिलवाई एवं पुत्री को एम.काम की शिक्षा दिलवाई । आज मेरा परिवार अच्छी तरह से जी रहा है। बचत भी कर लेती हॅू और वर्तमान में 7000 रू महीना कमा लेती हॅू । बचत करने की आदत भी अच्छी आदत है । ईश्वर भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करता है । ऐसे लोगो की मदद के लिए ईश्वर किसी न किसी को भेज देता है। आज संस्था ने हमारी मदद की तो जीवन ही बदल गया है ।
मेरा जीवन परेशानियों से घिरा था क्योंकि पति शराब के नशे में मारपीट करता था और एक दिन घर से बाहर निकाल दिया । अब कोई सहारा नहीं था। उदास एवं निराश होकर सोच रही थी कि बच्चों को लेकर कहा जाउ । सम्बल संस्था की एक कर्मचारी मेरे गावं में ही रहती थी और उन्होने मुझे इस संस्था से अवगत करवाया और मेरी परेशानियों से भरे जीवन की कहानी संस्था सचिव को बताई । संस्था द्वारा मुझे सिलाई मशीन दी गई और उससे मेैने कार्य करना प्रारम्भ किया । इतना ही नहीं मुझे संस्था द्वारा एक स्कूल में चपरासी के पद पर भी कार्य करने के लिए लगवा दिया गया जिससे हर महिने के 4000 से 5000 रू कमाने लगी और बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भी भेजने लगी । अब लगने लगा कि अच्छे दिन आ गये,अब मेरे पति में भी सुधार आ गया। मेरे साथ रहने लगे । संस्था ने मुझे सम्बल न दिया होता तो आज मै इतनी सुखी कभी नहीं होती ।
मेरी शादी बहुत कम उम्र मे हो गई थी । मेरी 3 लडकिया और 1 लडका था। मेरा एक लडका भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो गया,मुझे उसका इलाज करवाना था लेकिन मेरे पास उसका ईलाज करवाने के पैसे नहीं थें,इसलिये मेरे परिवार का खर्चा भी नहीं चल रहा था। एक दिन मेरा सम्पर्क परियोजना अधिकारी से हुआ । संस्था के माध्यम से रोजगार के लिए आटे की चक्की उपलब्ध करवाई गई । आटे की चक्की से मेरे परिवार के लिए एवं बच्चे के इलाज के लिये पैसे की व्यवस्था होने लगी । मैने धीरे-धीेरे परियोजना अधिकारी के माध्यम से स्वयं सहायता समूह का निमार्ण किया तथा बैक से ऋण लेकर धन्धे में और प्रगति की,इससे आर्थिक स्थिति मजबूत होने लगी । अपने परिवार के लिए मकान की व्यवस्था भी हो गई। सम्बल संस्था का मुख्य उद्देश्य ही महिलाओं के लिए स्वरोजगार की व्यवस्था करना है। संस्था ने मेरे रोजगार हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जिससे मैं आज समाज एवं परिवार में आत्म सम्मान का जीवन जी रही हॅू ।
मुझे संस्था द्वारा ब्यूटी पार्लर की ट्रेनिंग मिली यहा पर बहुत कम फीस में ट्रेनिंग करवाते है । जब मैं ट्रेनिंग के लिए इस संस्था में आई तब मेरे घर वालो ने बहुत मना किया लेकिन मेरे पति का पूरा सहयोग और मैने उनके सहयोग से ब्यूटी पार्लर की ट्रेनिंग पूरी की ।
मै भी कमाकर अपने पति की सहयोगी बनना चाहती थी और बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती थी । इस विचारधारा से मैने ट्रेनिंग कर अपने ही घर में ब्यूटी पार्लर खोला और दिन रात कडी मेहनत कर अपने व्यवसाय को लगन निष्ठा के साथ आगे बढाया,इससे मेरी मासिक आय 3000 से 4000 होने लगी । जिससे मेरे पति को सहयोग मिलने लगा और बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देने के लिए विघालय भेजने लगी । सच में संस्था हम सब बहिनों पर बहुत परोपकार कर रही है,मैं अपने जीवन में सदा इस संस्था की ऋणी रहूगी।
मेरा इस संस्था से 8 वर्ष पूर्व सम्पर्क हुआ था उस समय मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति कठिन थी । परिवार में दो लडकिया और दो लडके थे उनका पालन पोषण करना बहुत कठिन हो रहा था। पति का कोई सहयोग न था और नशा भी करता था। मेरे बेटे को एड्स की बीमारी हो गई थी और उसकी मौत हो गई । मै बहुत परेशान थी । परियोजना अधिकारी ने संस्था के माध्यम से कपडे की दुकान हेतु ऋण दिलवाया । मैने इस रोजगार से जुड कर दिन-रात कडी मेहनत की और मासिक आय 4000 रू तक कमाने लगी । मेरी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा और जीवन की इच्छाए पूरी होने लगी । अपने परिवार के लोगों को भी इसी व्यवसाय में लगा लिया । आज मै अच्छा जीवन जी रही हॅू । परेशानी के दिनों में मुझे इस संस्था का सहयोग मिला ।