मॉ की प्रेरणा से ’’सम्बल’’
सन् 1990 में मेरी श्रद्धेया माताजी लाडकवर बाईसा ने मुझे एक उलाहना दिया । उन्होने कहा,तुम सेवा की बात करते हो,सेवा का काम क्या करते हो । जयपुर फुट का काम देखते हो,वह अवश्य अच्छा है पर गांव की महिलाओं के बारे में तुम्हारी क्या सोच और योजना है । मेरे पास कोई पर्याप्त उत्तर नहीं था। जब मैं जोधपुर गया,तब इसका समाधान हुआ। वहा मेैने अपनी दुविधा श्रीमति सुशीला बोहरा जी को बताई । वे उस समय महिला विकास की परियोजना निदेशक थी । उनका उत्तर सकारात्मक था। उन्होने बताया कि उनके विभाग द्वारा जोधपुर जिले की 100 पंचायतों की साधनहीन महिलाओं का पूर्व में सर्वेक्षण किया हुआ है और अगर आर्थिक सहायता उपलब्ध हो तो उनको स्वरोजगार द्वारा आर्थिक रूप से सम्बल बनाया जा सकता है । इस आधार पर सम्बल की स्थापना दिनांक 7 फरवरी 1990 को जोधपुर में हुई ।
मैने कुछ दानदाताओं से बात की । सर्वप्रथम मोफतराज साहब मोहनोत ने सहायता दी । मुझे आज भी याद है कि शुरू में विभिन्न पंचायतों से 37 महिलाओं को चुना गया और जोधपुर बुलाया गया और उन्हें स्वरोजगार के लिए सहायता दी गई । परम श्रद्धेय आचार्य हस्तीमलजी महाराज के दर्शनार्थ भी उन्हें उसी समय ले गये। उन्होने बहिनों को आर्शीवाद दिया। जिस असीम श्रद्धा भाव से उन महिलोओ ने आचार्य श्री को नमन किया वह आज भी मेरी स्मृति में अमिट है ।
आचार्य श्री का आर्शीवाद सिर्फ महिलाओं को ही नहीं था,अपितु सम्बल को भी था । अन्य दानदाता भी जुडे । स्वर्गीय डी.पी.साबू साहब व उनका परिवार भी सम्बल को सहायता दे रहे है ताकि ऐसी तकलीफ वाली महिलाओं को आर्थिक मुख्यधारा से जोडा जा सकें ।
काम बढता गया और यह स्थिति है कि छः हजार से अधिक मुख्यतः ग्रामीण महिलाओं को पुर्नस्थापित करने का प्रयास किया गया । सफलता का प्रतिशत भी बहुत रहा । अधिकतर महिलाओं ने अपना काम सुचारू रूप से चलाया । कई महिलाओं ने पक्के मकान बना लिये । बैंक अकाउंट खोले गये । बच्चे,बच्चियों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया गया । उनका जीवन भी बदल गया ।
वर्षो तक जब भी मैं जोधपुर जाता,तो महिलाओं को मदद देने का एक कार्यक्रम का आयोजन अवश्य होता । शाम से देर रात तक सैकडो महिलाओं से बात करता। उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति का पता लगाता,उनकी गरीबी व सामाजिक स्थिति जानकर बहुत दुख होता उनको आश्वस्त करता। कार्यक्रमों में पूर्व में मदद दी गई महिलाए भी बडी संख्या में आती थी । जब उनसे बात होती और उनकी परिवर्तित स्थिति का पता लगता तब बहुत खुशी होती ।
एक बार सुशीलाजी को बिना साथ लिये मै सम्बल की कार्यकताओं के साथ कुछ गांवों में पूर्व में रोजगार दी गई महिलाओं की स्थिति को देखने भी चला गया। मुझे आश्चर्य हुआ कि न केवल उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति बदली पर उनका आत्मविश्वास भी बढ गया । एक अनुसूचित जाति की महिला,जो पहले बोल भी नहीं पा रही थी,अब दूसरी ऐसी महिलाओं का नेतृत्व कर रही थी। एक अन्य महिला से वहा के स्थानीय पुलिस कर्मचारी भी डरते थे कि अगर किसी महिला के प्रति उन्होने कोई गलत कार्यवाही की तो वह थाने को भी घेर सकती है तथा सारे जिला प्रशासन को हिला सकती है।
इतनी कम पंूजी से इतना व्यापक काम सिर्फ सम्बल ही कर सकता है ।
श्रीमति सुशीला बोहरा व उनके सहयोगियों ने इस संस्था को सफल और विख्यात बनाने के लिए अथक प्रयास किया,उनको मैं नमन करता हॅू और अपनी बात यह कर कर समाप्त करता हॅू कि श्रद्धेय माताजी का महिलाओं के प्रति करूणायम विचार सम्बल के रूप में साकार हुआ और उसका विस्तार हुआ ।