CORE TEAM

कार्मिकों के मन की बात.....!

श्रीमति भंवर कंवर

मेरी जिन्दगी मेरे नाम के अनुरूप थी । अपनी जिन्दगी की परिस्थितियों के भंवरजाल में फंसी हुई थी । सर्वप्रथम मैं पारसमल सुशीला बोहरा ट्रस्ट द्वारा लोकजुम्बिश प्रोग्राम से जुडी । मुझे आशा की एक नई किरण दिखने लगी । उस समय तक मुझे कार्य करने का कोई अनुभव नहीं था और न ही कोई डिग्री थी। केवल दसवी पास थी और वह भी प्राइवेट पढाई की थी । लेकिन सुशीला जी के मार्गदर्शन में निष्ठा से काम करने लगी । ट्रस्ट द्वारा लोक जुम्बिश का प्रोजेक्ट पूर्ण होने के बाद उन्होने मुझे सम्बल कार्यकर्ता के पद पर नियुक्त दी । मैने ऑफिस का कार्य करते हुए पहले इन्टर किया फिर बी.ए किया । मेरा हौसला बढने लगा। मैने कार्य के साथ एम.ए भी कर लिया । मेरा आत्मविश्वास बढने लगा। मुझे जितना काम दिया जाता उसे मैं बहुत ही निष्ठा व परिश्रम से करने लगी । धीरे-धीरे मेरी पहचान गांवों में बढने लगी,मेरी काम के प्रति लगन को देखकर मुझे परियोजना अधिकारी के पद पर लगा दिया ।

संस्था जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार देने के अलावा स्वयं सहायता समूह निर्माण का कार्य भी करती है । नाबार्ड के सहयोग से विभिन्न गांवों में 200 समूहो के निमार्ण का प्रोजेक्ट चल रहा था। हमने बहुत अच्छे समूह बनाये । उनके द्वारा ग्राम थबूकडा आदि गांवों में निरीक्षण के दौरान उनकी सफलता को देखकर नाबार्ड के अधिकारियों ने गांव के प्रत्येक समूह को 500-500 रूपये इनाम दिये । राशि भले ही कम हो लेकिन पुरस्कार शब्द में ही ताकत है। हमने 200 में से 160 समूहो को बैक से जोडा । आज उनमें से कई समूह लाखों की कमाई तक पहूच गये है ।

इसी समय जल व स्वास्थय अभियान्त्रिक विभाग से लूणी और मण्डोर के 183 गांवों के लोगो को पानी के विषय में जानकारी देने,नल कहा लगाये जाये,कितना पानी गांव को चाहिए,उसके लिए पूरे गांव का आबादी तथा पशुओं की संख्या की गिनती करना,नजरी नक्शा बनाना,महिलाओं की कमेटियां,ग्राम स्तर की कमेटियां बनाने तथा प्रशिक्षण देने का दुष्कर कार्य था। लेकिन हमने इतना अच्छा काम किया कि अन्य संस्थाओं ने हमें अन्य जिलों में काम करने का मौका दिया ं। आज मैं 8 जिलों के 704 गांवों में यह काम कर रही हॅू । अधिकांश गावं के कार्य सम्पन्न भी हो चुके है ।

संस्था द्वारा संचालित प्रशिक्षण केन्द्रों तथा जिला उघोग केन्द्र द्वारा आवंटित प्रशिक्षण कार्यक्रमों,प्रयास संस्था द्वारा आवंटित स्वास्थ्य कार्यक्रम,एन.आर.एच.एम आदि सभी कार्यो को करते हुए मैं संस्था के सपनों को साकार करने लगी हॅू । मुझे यहा काम करने में बहुत ही आनन्द आता हेै। अपने परिवार से भी जुडी हुई हूॅ । उनके दुःख सुख की हमेशा भागीदारी रहती हॅू । ऑफिस में हम सभी कर्मचारी परिवार की तरह कार्य करते है । संस्था के सभी सदस्यों से भी मुझे बहुत सीखने को मिला ।

सरोज कंवर

मै इस संस्था से सन् 2006 से जुडी थी । उस समय मेरी परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । मै स्वयं प्रशिक्षण लेकर आर्थिक दृष्टि से सक्षम होना चाहती थी । 2006 में संस्था में ब्यूटी पार्लर का काम सिखने के लिए आई थी । ब्यूटी पार्लर का कोर्स सीखकर में संस्था में ब्यूटिशीयन के पद पर कार्य करने लग गई । इस कार्य के साथ में नाबार्ड द्वारा एस.एच.जी परियोजना के अर्न्तगत 100 एस.एच.जी के निमार्ण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एवं उन समूहो को बैक से राशि से जोडा । अब 2014 से आई.ई.सी कार्यक्रम के अर्न्तगत परियोजना समन्वयक के पद पर कार्य कर रही हॅू । इस संस्थान से जुडने से मेरी जिन्दगी ही बदल गई है,मेरे भविष्य का निमार्ण कर दिया है । मेरे पति कुछ नहीं कमाते,उनके आलस्य की आदत से हमारा घर बर्बाद हो गया है । उससे उभारने के लिये मैं संस्था की बहुत आभारी रहॅूगी । संस्था ने मेरे एक मात्र बेटे को अच्छा पढा लिखा कर समर्थ होने का अवसर दिया है । इसी का परिणाम है कि मेरे बेटे का चयन राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट टीम में चयन हुआ । मेैं संस्था के उपकार को कभी नहीं भूल सकती ।

शमा परवीन

मैं 2005 में यहा ब्यूटी पार्लर का कोर्स सीखने के लिए आई थी । मैं इस कार्य में बहुत निपुण हो गई अतः 2007 में सरोज कंवर मैडन मेरे घर आई और उन्होने मुझसे सम्बल में ब्यूटी पार्लर सीखाने के लिए प्रोत्साहित किया । मेरे घर वालो ने बहुत मना किया लेकिन मेरे पति इस्लामुदिन ने मेरा साथ दिया। मैं सम्बल में ब्यूटी पार्लर का कोर्स सिखाने लगी उस कोर्स को सीखाने के मुझे प्रति माह 1000/- रू मिलते थे । मैने यहा उसके बाद सिलाई का कोर्स भी पूरा किया । मै दूसरी जगह सम्बल के जरिये ही सिलाई सिखाने जाने लगी जिसके भी मुझे प्रति माह 1000/- रू मिलते थे । अब मानदेय काफी अधिक है। इसके अलावा मैं प्रदर्शनी में जूतियों की दुकान भी लगाती थी उसमें मेरे पति मेरे साथ बैठते थे । उसमें हम 10 दिन के 10000 रू कमा लेते है । अतः मैं दो-दो जगह प्रशिक्षण देती हॅू और सेन्ट्रल जेल में सिलाई सीखाती हूं। अब मैं प्रति माह 9000/- रू कमा लेती हॅॅू । सम्बल से मुझे बहुत सहयोग मिला और मैने बहुत सारी महिलाओं को सम्बल के माध्यम से सिलाई मशीने और लोन भी दिलाया जिससे गरीब महिलाओं को बहुत मदद मिली । सुशीला दीदी के बारे में मै यही कहना चाहती हॅू कि जैसे उन्होने मेंरे जीवन को नई रोशनी दी वैसे ही अन्य गरीब महिलाओं की भी मदद कर रहे है तथा आगे भी करते रहे । मुझे यहा बहुत ही अच्छा लगता है ।

कान्ता तोमर

मैने ’’सम्बल’’ में 2007 में श्रीमान बंशीलाल जी से सिलाई सीखी । मेरे घरी की आर्थिक अवस्था ठीक नहीं थी इसलिए मैं सम्बल में सिलाई सीखाकर खुद अपना रोजगार करना चाहती थी । प्रशिक्षण समाप्ति के बाद सिलाई शिक्षक बंशीलालजी के स्वर्गवास के बाद मुझे प्रशिक्षक के रूप में कार्य करने का मौका मिला। मै 12 से 3 बजे तक सिलाई सिखाती हूॅ। मुझे 3000/- रू प्रति माह मानदेय मिलता है । मेै सरोज कंवर मैडम का धन्यवाद करती हॅू कि मुझे उन्होने सीखाने का अवसर प्रदान किया । महोदय हो धन्यवाद दूगी की कि मुझे उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान किया । मुझे सम्बल में अपनी ही तरह दूसरी महिलाओं को सिलाई सीखाना बहुत अच्छा लगता है । मै सम्बल से हमेशा जुडी रहूगी और सारी महिलाओं को सिलाई सीखाकर उनका भविष्य बना सकू यही मेंरी भावना है ।

सोहन सारण

मै इस संस्था से सन् 2009 में जुडा था। उस समय मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । मै सन् 2009 में 12 वी में अध्ययन कर रहा था। मेरे पास स्कूल की फीस भरने के लिए भी पैसे नहीं थे । मैं कचहरी परिसर मे टाईपिग का कार्य करके स्कूल जाता था इस कारण मेरी पढाई भी सही ढंग से नहीं हो पा रही थी । उस समय मेरी माताजी श्रीमति सजनाई देवी इस संस्था से जुडी हुई थी । एक बार परियोजना अधिकारी श्रीमति भवर कंवर मेरे घर पर आये । उन्होने मुझ से पुछा कि कहा पढाई कर रहे हो । मैने उन्हे अपनी समस्या बताई तब उन्होने संस्था सचिव श्रीमति सुशीलाजी को मेरी आपबीती बताई। उन्हें धन्यवाद देता हॅू कि उन्होने मुझे संस्था में ही रहने के लिए मकान एवं पढाई का खर्चा इत्यादि देने की स्वीकृति प्रदान की । मै पढाई के साथ-साथ संस्था में कम्प्यूटर पर अंशकालिन कार्य भी करने लगा । मैने संस्था के सहयोग से 12 से ग्रेजुएट तक की पढाई पूरी ेकर ली । पढाई के बाद संस्था ने मेरे को पूर्णकालीन काम करने का अवसर दिया । आज मैं संस्था में परियोजना समन्वयक पद पर कार्य कर रहा हॅू । मुझे अच्छा वेतन मिल रहा है।

पुष्पा भूतडा पुत्री स्व.श्री पन्नालाल जी भूतडा,नन्दवान लूणी (सहयोगी कार्यकर्ता)

मै इस संस्था से 25 वर्षो से जुडी हॅू । यह एक ऐसी संस्था है,जो लोग पेड को उखाडकर फेंक देते है,सम्बल संस्था फेके हुए पेड को पुनः लगाकर हरा-भरा कर देते हेै । गरीब,विधवा,विकलांग,परित्यागता महिलाओं को अपना स्वरोजगार लगवाकर आत्म निभर्र बनाती है । जिससे अपने परिवार का पालन पोषण भली-भांति कर सके । समाज में मान सम्मान की जिन्दगी जी सके ।

इस कार्यक्रम के तहत मैने आज तक 150 महिलाओं को जोड दिया है। मुझे इस संस्थान से जुड कर कार्य करने में बहुत अच्छा लगता है । समाज की महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ बनाने में इस संस्था ने बहुत श्रेष्ठ कार्य किया है। मै इस संस्था में हमेशा जुडी रहना चाहती हॅू ।

ज्योति सोलंकी पत्नि श्री नरेन्द्र सिंह(सहयोगी कार्यकर्ता)

पेट्रोल पम्प के पास सूरसागर पूर्व पार्षद

मै सम्बल संस्था से 15 साल से जुडी हुई हॅू । मैने इस संस्था से जुडकर गरीब बेसहारा एंव विधवा महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण देकर उन्हे स्वरोजगार हेतु प्रेरित किया है।

मैने आजतक लगभग 100 महिलाओं को सिलाई एवं बन्धेज का प्रशिक्षण दिया हेै । इस संस्था का मुख्य उद्धेश्य यही है,महिलाओं को स्वरोजगार के काबिल बनाकर आत्म निर्भर बनाना है एवं बेसहारा महिलाओं को सहारा देना,आर्थिक सम्बल देना,जिससे वे खुशहाली से जी सके । मैने आजतक अपनी पंचायत की करीब 100 महिलाओं को स्वरोजगार दिलाने में सहयोग किया तथा उनके कार्य की निगरानी भी रखती हूॅ तथ उचित परामर्श भी देती हॅू । मुझे भी इस संस्था में कार्य करना बहुत अच्छा लगता है ।